क्या महायुति-MVA दोनों को नहीं मिलेगा बहुमत? निर्दलीय बन सकते हैं किंगमेकर, जानें क्यों हो रही ऐसी चर्चा

मुंबई: चुनाव में इस बार बड़ी संख्या में बगावत देखने को मिल रही है। लिहाजा महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव की मौजूदा शक्लों सूरत इशारा कर रही है कि इस बार महाराष्ट्र में निर्दलीय विधायक किंगमेकर हो सकते हैं। यह स्थिति तब और मजबूत हो जाएगी जब नाम वाप

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मुंबई: चुनाव में इस बार बड़ी संख्या में बगावत देखने को मिल रही है। लिहाजा महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव की मौजूदा शक्लों सूरत इशारा कर रही है कि इस बार महाराष्ट्र में निर्दलीय विधायक किंगमेकर हो सकते हैं। यह स्थिति तब और मजबूत हो जाएगी जब नाम वापस लेने के आखिरी दिन तक अगर राजनीतिक पार्टियां बागियों को नाम वापस लेने के लिए न मना पाईं तो...। हालांकि अगर निर्दलीय विधायक किंगमेकर हो गए तो इसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए। क्योंकि 1995 में महाराष्ट्र ऐसी स्थिति देख चुका है। हां अब देखने वाली बात यह है कि क्या इस बार भी महाराष्ट्र 1995 वाली स्थिति को दोहराता है या फिर राजनीति की कोई नई पटकथा लिखता है।

पहली बार छह पार्टियां
आम तौर पर महाराष्ट्र में चार बड़ी राजनीतिक पार्टियां चुनावी अखाड़े में रहती थीं। इस बार शिवसेना और एनसीपी के दो फाड़ होने से छह पार्टियां चुनावी अखाड़े में है। तीन तीन पार्टियों के दो खेमे हैं। सता के लिए पहले विधानसभा की 288 सीटों का बंटवारा चार बटा दो होता था वहीं अब छह बटा दो हो गया है। इसलिए टिकट चाहने वालों की संख्या बढ़ गई है और टिकट बांटने वालों के हाथ तंग हो गए हैं। ऊपर से अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदी को ऐन चुनाव के मुहाने पर डबल नुकसान पहुंचाने की इच्छा से आयाराम पर टिकट न्योछावर करने की राजनीतिक मजबूरी ने भी बागियों की संख्या में इजाफा किया है। हालात यह है कि आज 288 सीटों में से ज्यादातर पर राजनीतिक रूप से मजबूत निर्दलीय उम्मीदवार ताल ठोक रहे हैं। अपनी ही पार्टी के खिलाफ बगावत करने और निर्दलीय चुनाव लड़ने का दंभ भरने वालों को समझाने, बुझाने, मनाने का काम चल रहा है। पार्टी के बड़े नेता इस काम में जुट हैं। साथ ही साथ बगावत के असर को कम करने का इंतजाम भी किया जा रहा है।


अब बात 1995 की
1995 का चुनाव एक असाधारण चुनाव था। 1992 का बाबरी मस्जिद का मसला और उसके ठीक बाद 1993 का मुंबई बम ब्लास्ट की गूंज वातावरण में थी। सारा सेंटीमेंट एक तरफ था। कांग्रेस विरोधी वातावरण था। कांग्रेस का मुकाबला बीजेपी और शिवसेना के गठबंधन से था। ऐसे एक तरफा सेंटीमेंट वाले माहौल में भी 36 पार्टियां और महाराष्ट्र की 288 सीटों पर 3196 निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव मैदान में थे। कांग्रेस अकेली 288 में से 286 सीटों पर चुनाव लड़ रही थी। जबकि बीजेपी शिवसेना गठबंधन में शिवसेना 169 और बीजेपी 116 सीटों पर चुनाव लड़ रही थी। चुनाव का नतीजा सामने आया तो कांग्रेस जबरदस्त नुकसान के बाबजूद 80 सीटों पर जीती। शिवसेना ने 73 और बीजेपी ने 65 सीटें जीती, लेकिन 45 सीटों पर निर्दलीय चुनाव जीते। कांग्रेस के पास अकेले सबसे ज्यादा 80 विधायक थे लेकिन बहुमत नहीं था। शिवसेना-बीजेपी गठबंधन के रूप में 138 विधायक थे, लेकिन उनके पास भी बहुमत नहीं था। तब निर्दलीय विधायकों की मदद से महाराष्ट्र में शिवसेना बीजेपी की सरकार बनी थी।


त्रिशंकु रही विधानसभा तो...राजनीति के कई जानकार अभी से महाराष्ट्र में त्रिशंकु विधानसभा की बात कर रहे हैं। यानी महा विकास आघाड़ी और महायुति दोनों में से किसी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला और अगर सच में त्रिशंकु विधानसभा अस्तित्व में आई तो निर्दलीय किंगमेकर होंगे। यह स्थिति आज के दौर में इसलिए भी ज्यादा संभावित लग रही है, क्योंकि फॉर्मूला यह है कि जिसके ज्यादा विधायक उसका मुख्यमंत्री। यही फॉर्मूला एक दूसरे के उम्मीदवारों को गिराने हराने के लिए निर्दलीय को ताकत देने का काम करेगा। उसके बाद साम, दाम, दंड, भेद का चतुरंगी खेल तो सत्ता का प्रिय शगल है ही।

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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